यह नारीपन ।
तू बंद किए अपने किवाड़
बैठा करता है इंतजार ,कोई आए
तेरा दरवाजा खटखटाए ,
मिलने को बाहें फैलाए ,
तुझसे हमदर्दी दिखलायें ,
आंसू पोछे औ कहे, हाय, तू जग में कितना दुखी दीन ,
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यह नारीपन |
ओ अवचेतन !
तू अपने मन की नारी को,
अस्वाभाविक बीमारी को,
उठ दूर हटा,
तू अपने मन का पुरुष जगा,
जो, बे-शर्माए बाहर जाए,
शोर मचाए ,हँसे, हसाँये,
छेड़े उनको जो बैठे हैं , मुह लटकाए ,उदासीन ।